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दुखिया का धर्म बचाईये हो राम / मेहर सिंह

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इस पापी कै धौरे मेरी ज्यान टका सी
दुखिया का धर्म बचाईये हो राम।टेक

यो पड्या दुःख विपता का जाल
प्रभु झट आकै करो सम्भाल
यो काल मेरे सिर पै धोरै छाई सै उदासी
मनै मृत्यु का दिन चाहिऐ हो राम।

चोट छाती में लाग कसूत गई
ईज्जत सबकी रुब रुब गई
मैं डूब गई कालर कोरै हे सच्चे अभिनाषी
मेरी नाव कै बली लगाईये हो राम।

लिखुं सूं ऊंच नीच की डिगरी
मेरे चोट लागगी जिगरी
इस नगरी कै गोरै घलगी फांसी
छुटै तै ज्यान छुटाईये हो राम।

मेहर सिंह डुंडी सारै पिटगी
ईज्जत खानदान की घटगी
मै लुटगी गुप्त मशोरै ना लाई वार जरासी
कुछ तै जतन बताईये हो राम।