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दुखोॅ रोॅ बात / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’

की कहभौ दुखोॅ रोॅ बात? गे बहिना, की कहभौं दुखोॅ रो बात?
कोय नैं पतियाबै छै, जत्तेॅ सताबै छै मारै छै मुक्का औ लात
जइहै सें मुंहझौसां बीहा करी लानलेॅ छै, टिकली सिनूरोॅ के बतिहौ नैं जानलेॅ
बापोॅ के हमरोॅ करजभौ नैं सधलोॅ छै, तइयो निठल्लू ठो बाप्है पेॅ लधलोॅ छै
सुसरी ने घुरी-घुरी भेजै छै मैका, ससुवा ननदियाँ ने मारै छै ठुमका
नैहरा सें टानै लेॅ सभ्भैं बताबै छै, करला मनांही पेॅ सभ्भैं सताबै छै

राति-दिनें करै छै कभात।।गे बहिना।।

अेन्होॅ दलिदरोॅ कन बीहा बाबां करलक, लोभी निकम्मा जमैइयो ठो पैलक
ससुवां ससुरबां सैय्याँ केॅ सनकावै छै, ननदीं अगिनियाँ झरकावै लेॅ बताबै छै
नौड़ी कही केॅ कमबाबै भरी इच्छा, कुतिया गिदरनी छै हमरा सें अच्छा

देख्हौ लेॅ नैं दै छै भात,
गे बहिना! की कहवौ दुखोॅ रोॅ बात?