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दुख, प्रेम और समय / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
बहुत से शब्द
बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ
बहुत बाद में समझ में आते हैं
दुख के रहस्य
ख़त्म हो जाने के बाद कोई सम्बन्ध
नए सिरे से बनने लगता है भीतर
...और प्यार नष्ट हो चुकने
टूट चुकने के बाद
पुनर्रचित करता है ख़ुद को
निरंतर पता चलती है अपनी सीमा
अपने दुख कम प्रतीत होते हैं तब
और अपना प्रेम कहीं बड़ा ।