भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुख उसे रुलाता नहीं / आलोक श्रीवास्तव-२

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
दुख उसे रुलाता नहीं
न प्रेम ही परेशान करता है
वह गुजरती है रास्तो से
शहर के सबसे उदास
निर्जन रास्तों से
जिनके किनारे
फूलों का इंतज़ार करते
गुलमोहर के पेड़ हैं
प्रेम की कहानियां हैं कई
कई दुख
कई उदासियां
मगर वह उदास नहीं होती
न दुखी
वह पहचानती है शहर के सब रास्तों को
हर जगह वह आयी गयी है
वह जानती है अपने शहर के दुख
बहुत गहरा रिश्ता है उसका
अपनी खु़शियों से
हर मौसम में उसने देखा है नदी को बहते
वक़्त की ओर वह कभी-कभी
हैरत से देखती है !