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दुख का अवसर कभी, है कभी हर्ष का / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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दुख का अवसर कभी, है कभी हर्ष का
नाम जीवन है अविराम संघर्ष का
राजनयिकों का यह मंत्रणा कक्ष है
नाम लेना यहाँ पर न आदर्श का
कुछ न सीमा रही राष्ट्र अपकर्ष की
साथियों, कुछ करो यत्न उत्कर्ष का
पास जाकर भी दूरी नहीं मिट सकी
लाभ किंचित न हम पा सके दर्श का
एक पल का किसी को भरोसा नहीं
आप सामान करते हैं सौ वर्ष का
मुश्क़िलों की अभी तो ये शंरूआत है
ज़िक्र करते हैं क्यों आप निष्कर्ष का
वानरों की सभा में बया मत बनो
होगा परिणाम उल्टा परामर्श का
उठ के अदना से आला हुआ वो ‘मधुप’
साथ छोडा नहीं जिसने संघर्ष का