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दुख का पत्थर / द्रागन द्रागोयलोविच / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
पत्थर, जिसके पास कोई आशा नहीं
और न ही स्मृतियाँ
एक पत्थरी चट्टान खिर-खिर कर
खण्डहर बन रही है ।
कोई नहीं बचा
जुलाई मास की तपन भग्न घर के
दरवाज़े से भीतर सरक आती है
दीपको के चिह्न की तरह
जुगनू चमक रहे हैं,
दूर कहीं से कृषकों के गीतों से
उजाड़ मौन दरक रहा है,
रात की तेज़ हवा में
मकड़ी के जाले की तरह काँपते
उस शान्त तारे से
इस जगह पर उतरता हुआ,
जहाँ हमारी पूर्व ज़िन्दगी
औेर वर्तमान मृत्यु के अतिरिक्त
और कोई नहीं बचा
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रति सक्सेना