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दुख के प्रति आभारी हूँ मैं / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
दुख ने स्नेह के साथ
मेरे माथे पर अँकित किया चुम्बन
मेरी आँखों में अमावस्या
समा गई
जन्म-जन्मान्तर से करता रहा हूँ
दुख के साथ सहवास
इसीलिए उससे कोई
शिकायत नहीं है
दुख ने मुझे धोया
आँसुओं की नदी में
मेरे हृदय में करुणा भरकर
दुख ने कहा —
मुस्कुराओ
दुख ने मुझे जगत को देखने की
नई दृष्टि दी
और मेरे वजूद में
भर दी चट्टानी शक्ति
दुख से अलग होकर
मैं किसी युग में जिया नहीं
इसीलिए दुख के प्रति
आभारी हूँ मैं