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दुख के सब आसपास रेॅहै छै / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
दुख के सब आसपास रेॅहै छै
तोरोॅ रं नै उदास रेॅहै छै
ककरा चिन्ता छै अपनोॅ देशोॅ के
सब्भे तेॅ बदहवास रेॅहै छै
कुछुवैं खोदै भी छै चुआँड़ी केॅ
सबकेॅ थोड़े पियास रेॅहै छै
बात कुछुवे नै जेकरामे लागौं
बात ओकरैमें खास रेॅहै छै
हुनका विश्वास छै तेॅ दासे पर
घर में मलकैन, दास रेॅहै छै
लाख बोलोॅ मतर के पतियैथौं
नीम में भी मिठास रेॅहै छै
अबकी होलोॅ छै फसल भी दुगनोॅ
सबके घर में उपास रेॅहै छै
(पीर का पर्वत पुकारे से)