दुख तो होगा दोस्त / रणविजय सिंह सत्यकेतु
क्या करूँ, दोस्त !
अपनी फितरत ही ऐसी है
कि चाहकर भी उसूलों को छोड़ नहीं पाता
दिल तोड़ने वाले गुणा-भाग पर
तुम्हारी तरह रोमांचित हो नहीं पाता
कितना भी कहो
नहीं सीख पाऊँगा कभी
बदतर हालात में भी
भीतर ख़ुशी दबाए मासूम बने रहने की कला
पीड़ा है तो साफ़ दिखाई देगी चेहरे पर
गुस्सा है तो तमतमा जाऊँगा
और प्यार है तो छलक उठेगा व्यवहार में
क्या करूँ, दोस्त !
अपना मिज़ाज ही कुछ जुदा है
लोमड़ी को शेर स्वीकारना हो नहीं पाता
कायरों को बहादुर
और गद्दारों को क्रान्तिकारी कह नहीं पाता
कितना भी बक लो
तुम्हारे कहे का मूल भावों से सँगत बैठा नहीं पाऊँगा
गुलाब को पँखुरियों से अलग देख नहीं पाऊँगा
सच कहूँ तो
बहुरूपिया भी इतना शातिर नहीं होता
कौआ भी इतना काँय काँय नहीं करता
दुख है, दोस्त !
कि हमारे चलने का वक़्त एक ही है
मगर सुख है कि तुम्हारे साथ चलने से
मेरे क़दम लगातार इनकार कर रहे
यह तो तय है
जल्द ही ख़त्म हो जाएगा यह बेसुरा मंगलगान
शुरू हो जाएगा तेरे अन्दर बाहर टूटने का क्रम
रोक लो ख़ुद को
मुर्दागीरी में कब तक रहोगे मगन
कैसे समझाऊँ, दोस्त !
वाह-वाहियाँ कैसी कैसी
दरबारी कैसे कैसे
चालाकियाँ कैसी कैसी
पलटीमार कैसे कैसे...
उतार लो नक़ली चोला
मसकरा ग्लिसरीन लगाकर क्यों बन रहे हो भोला
जानता है ज़माना
तुम्हारी अक़लियत और ज़मींदारी की हक़ीकत
जिन अमृतबेल के भरोसे अटूट बनी हुई हैं सांसें
उन्हें मसलने के मनसूबे
आत्मघाती साबित होंगे, मूरख
गर टूट गई हया की दीवार
और हट गया रुख़ से पर्दा
किसे मुँह दिखाओगे
दुख तो होगा, दोस्त
मगर होना लाजिमी है तेरी मर्दानगी की फ़ज़ीहत ।