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दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें / फ़राज़
Kavita Kosh से
दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं के तुझसे कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझसे कहें
एक तू हर्फ़आश्ना था मगर
अब ज़माना नहीं के तुझसे कहें
बे-तरह दिल है और तुझसे
दोस्ताना नहीं के तुझसे कहें
ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त
आब-ओ-दाना नहीं के तुझसे कहें