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दुख माँजता है / सुभाष शर्मा
Kavita Kosh से
दुःख आता है तूफान-सा कभी
तो कभी अतिथि बनकर
दुःख न हो तो सफर कैसा ?
सफर न हो तो अनुभव कैसा ?
अनुभव न हो तो बदलाव कैसा ?
बदलाव न हो तो जीवन कैसा ?
तब समेट लेंगे जिंदगी सारी
ऊब, घुटन और नीरसता के बादल
जैसे समेटता है केकड़ा ।
दुःख करता है सचेत
माँजता है इन्सान की आत्मा को
आँसुओं के समुंदर में
दुःख देता है जीने की उतनी ताकत
भविष्य के लिए
जितनी हर लेता है वर्तमान में ।
सब नहीं देख पाते दुःख का सौंदर्य
जैसे नहीं देख पाते सब सुख के भीतर
जमी गंदगी की काई और बदबू
जो नहीं उड़ते सुख में
वे कभी नहीं घबराते दुःख में ।