भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख में जो बिताया है वो वक्त भुला देना / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दुख में जो बिताया है वो वक्त भुला देना
उम्मीद के पंछी को दिल से न उड़ा देना
तकदीर सताये तो हैं लोग बिछड़ जाते
मिल जाय अगर मौका बिछुड़ो को मिला देना
यादों की महफ़िलें तो हैं रोज़ सजा करतीं
ऐसे में कभी आ के आवाज़ लगा देना
हर रात अँधेरी है पर नींद नहीं आती
कुछ ख़्वाब सलोने इन आँखों में बसा देना
ख़त आँसुओं से लिख कर रक्खा है निगाहों में
तुम तक न पहुँच पाये अब अपना पता देना
काँटे हैं बिछा देते राहों में तुम्हारी जो
मुश्किल में पड़ें ग़र वो तुम साथ निभा देना
है रात बहुत काली घिरती हैं घटाएँ भी
राही न भटक जाये इक दीप जला देना