भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख से नाता जोड़, रे साधो ! / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
दुख से नाता जोड़, रे साधो !
दुख से नाता जोड़ !
यों भी अपना सुख बेमाने
उनके सुख के ही कुछ माने
दुखिया लाख-करोड़, रे साधो !
दुखिया लाख - करोड़ !
सबके हाथ हाथ हों सबके
कहते हुए बुढ़ाए कब के
निज से निज की होड़, रे
साधो !
निज की निज से होड़ !
सुख की आशा घोर निराशा
जीते जी हो गए तमाशा
जुड़ा गए सब जोड़, रे साधो !
जुड़ा गए सब जोड़ !
सम्भव है अच्छे दिन आएँ
बुरे दिनों के दिन लद जाएंँ
यों ही मत रण छोड़, रे साधो !
यों ही मत रण छोड़ !