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दुख हो या सुख, जब सदा संग रहे ना कोए / मजरूह सुल्तानपुरी

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दुख हो या सुख, जब सदा संग रहे ना कोए
फिर दुख को अपनाइए, के जाए तो दुख ना होए

राही मनवा दुख की चिन्ता क्यो सताती है,
दुख तो अपना साथी है
सुख है एक छाँव ढलती आती है, जाती है,
दुख तो अपना साथी है

दूर है मंज़िल दूर सही, प्यार हमारा क्या कम है
पग में काँटे लाख सही, पर ये सहारा क्या कम है
हमराह तेरे कोई अपना तो है
सुख है एक छाँव ढलती आती है, जाती है

दुख हो कोई तब जलते हैं, पथ के दीप निगाहों में
इतनी बड़ी इस दुनिया की, लम्बी अकेली राहों में
हमराह तेरे कोई अपना तो है
सुख है एक छाँव ढलती आती है, जाती है