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दुतकारो-डाँटो सदा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
दुतकारो-डाँटो सदा, करो घोर अपमान।
सुख सब छीनो, दुःख दो, मार करो बेभान॥
कभी न निकलेगी जरा मेरे मुखसे आह।
यही कहूँगी बिहँस मैं-’वाह, वाह, प्रिय! वाह’॥
तुमने अपनी वस्तुको बरता मन-अनुसार।
छोड़ा-बिसराया नहीं यह क्या थोड़ा प्यार?
जो मन भाये, सो करो भला-बुरा व्यवहार।
पर मन में रखो सदा, यही करो इकरार॥