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दुनिआं मैं रे बाबा नहीं रे गुजारा किसी ढब तै / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
दुनिआं मैं रे बाबा नहीं रे गुजारा किसी ढब तै
घर मैं रहै तो कैसा जोगी बन मैं रहे विपत का भोगी
मांगै भीख बतावै लोभी त्यागी बण ग्या कब तै
दुनिआं मैं रे बाबा...
बोलंू तो बेचाल बतावै नहीं बोलै गरभाय रह्या
करैं कुसामंद हार गया है डरै रै हमारे डर तै
दुनिआं मैं रे बाबा...
धरम करै तो दरब लुटावै नहीं करै तो सूम बतावै
क्या कहूं कुछ कहीए ना जावै परीत करै मतलब तै
दुनिआं मैं रे बाबा...
अचार करूं पाखंड मचावै नहीं करूं तो पसू बतावै
हंसूं तो कहते हैं मस्तावै नहीं हंसूं तो बिंधा मरज तै
दुनिआं मैं रे बाबा...
नींदा अस्तुती दोनों त्यागे सुब असुब पीठ दे भागे
राम परताप चरण चित लागै तब रै जीते इस जग तै
दुनिआं मैं रे बाबा...