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दुनिया का अन्त / मिरास्लाव होलुब / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
पक्षी अपने गीत के
अन्तिम छोर पर पहुंच गया था
और पेड़ घुलता जा रहा था
अपने पंजों के पास।
आकाश में उमड़-घुमड़ रहे थे मेघ
अन्धियारा बहता ही जाता था
तमाम रन्ध्रों से होकर
डूबते हुए जलयान के परिदृश्य में।
केवल टेलीग्राफ़ के तारों में
एक सन्देश अब भी चटचटा रहा था :
घ----र----आ---जा----ओ।
तु----म्हा----रा---ए-----क ।
बे-----टा-----है---।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र