भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया का अन्त / मिरास्लाव होलुब / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पक्षी अपने गीत के
अन्तिम छोर पर पहुंच गया था
और पेड़ घुलता जा रहा था
अपने पंजों के पास।

आकाश में उमड़-घुमड़ रहे थे मेघ
अन्धियारा बहता ही जाता था
तमाम रन्ध्रों से होकर
डूबते हुए जलयान के परिदृश्य में।

केवल टेलीग्राफ़ के तारों में
एक सन्देश अब भी चटचटा रहा था :

घ----र----आ---जा----ओ।
तु----म्हा----रा---ए-----क ।
बे-----टा-----है---।

अंग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र