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दुनिया का नागरिक / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
मैं दुनिया का नागरिक हूं
यह देश मेरा निवास है
मुझमें पराजय का क्रोध है
और लड़ने की हमेशा बची इच्छा
जब हम इतने अलग हैं
तो प्रेम कैसा ?
जब एक नहीं हैं तो किसका
यह देश और इसका प्रेम ?
जो ऐसे प्रेम के नाम पर दी जाती है
मैं उस यातना के खिलाफ हूं
मैं जीवित हूं कि सोचता भी हूं
दूसरे के समान जीवन
जीने के बारे में।