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दुनिया की सबसे सुन्दर कविता / कौशल किशोर
Kavita Kosh से
कैसी है वह
कितनी सुन्दर?
इसे किसी प्रमेय की तरह
मुझे नहीं सिद्ध करना है
वह देखने में कितनी दुबली-पुतली
क्षीण काया
पर इसके अन्तर में है
विशाल हृदय
मैं क्या, सारी दुनिया समा सकती है
जब भी गिरता हूँ
वह संभालती है
जब भी बिखरता हूँ
वह बटोरती है
तिनका तिनका जोड़
चिडि़या बनाती है अपना घोसला
वैसे ही वह बुनती है घोसला
शीत-घाम से बचाती है
मैं कहता हूँ
उसके सौन्दर्य के सामने
मेरी नजर में
सब फीके हैं
उसका सौन्दर्य मेरे लिए
गहन अनुभूति है
लिखी जा सकती है उससे
दुनिया की सबसे सुन्दर कविता।