दुनिया के चलन का हो बयां क्या किस्सा
कुछ और उलझता गया जितना सुलझा
सूरज ही मफर की न थी हालात से कुछ
शीशे में बाल निकला हर इक रिश्ता।
दुनिया के चलन का हो बयां क्या किस्सा
कुछ और उलझता गया जितना सुलझा
सूरज ही मफर की न थी हालात से कुछ
शीशे में बाल निकला हर इक रिश्ता।