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दुनिया ने जब भी दर्द दिया / भावना कुँअर

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दुनिया ने जब भी दर्द दिया
तुमने सदा सँभाला मुझे
क्या सोचा है कभी
जो दर्द तुम दे गए
उसको लेकर मैं किधर जाऊँ?

ढ़ाल बनकर खड़े होते थे तुम
और अब हाथ में तलवार लिए खड़े हो
क्या कभी सोचा तुमने
कितने वार खाएँ हैं मैंने
इस बेदर्द ज़माने के
तो क्या तुम्हारा वार जाने दूँगी खाली?

तो फिर
मत सोचो इतना
और चला डालो अपना भी वार
मत चूको
वरना रह जाएगी
तुम्हारी तमन्ना अधूरी

तुम जानते हो
हाँ, बहुत अच्छी तरह
कि मैं नहीं देख पाती किसी की भी
अधूरी तमन्नाएँ
उन्हीं के लिए तो जिंदा रही अब तक
सबकी तमन्ना पूरी कर
मंज़िल तक ले जाना ही तो काम है मेरा
फिर तुमको कैसे निराश होने दूँ मैं

चलो तुम्हें भी तो
दिखा दूँ मंज़िल का रास्ता
और फिर टूट जाएँ ये साँसे
तो मलाल ना होगा
टूटती इन साँसों के लबों पर
बस इक तेरा ही नाम होगा ।