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दुनिया भर के बेटों की ओर से... / विवेक चतुर्वेदी

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एक दिन सुबह सोकर
तुम नहीं उठोगे बाबू...
बीड़ी न जलाओगे
खूँटी पर ही टंगा रह जाएगा
अंगौछा...
उतार न पाओगे

देर तक सोने पर
हमको नहीं गरिआओगे
कसरत नहीं करोगे ओसारे
गाय की पूँछ ना उमेठेगो
न करोगे सानी
दूध न लगाओगे

सपरोगे नहीं बाबू
बटैया पर चंदन न लगाओगे
नहीं चाबोगे कलेवा में बासी रोटी
गुड़ की ढेली न मंगवाओगे
सर चढ़ेगा सूरज
पर खेत ना जाओगे

ओंधे पड़े होंगे
तुम्हारे जूते बाबू...
पर उस दिन
अम्मा नहीं खिजयाऐगी
जिज्जी तुम्हारी धोती
नहीं सुखाएगी
बेचने जमीन
भैया नहीं जिदयाएंगे
 
उस दिन किसी को भी
ना डांटोगे बाबू
जमीन पर पड़े अपलक
आसमान ताकोगे
पूरे घर से समेट लोगे डेरा
बाबू ...तुम
फोटो में रहने चले जाओगे
फिर पुकारेंगे तो हम रोज़
पर कभी लौटकर ना आओगे।