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दुनिया मस्त खिलौने पाकर हम सन्नाटा बुनते हैं / विनोद तिवारी
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दुनिया मस्त खिलौने पाकर हम सन्नाटा बुनते हैं
फूलों की आशा में पथ के कंकर -पत्थर चुनते हैं
झोंपड़ियाँ बेचारी कितना रोएँ चीखें चिल्लाएँ
ऊँच महल अटारी बंगले शोर भला कब सुनते हैं
सूखा था तो बोई, आँधी-ओलों में जो काटी थी
उसी फ़सल के दाने हम, जो बिके नहीं हैं घुनते हैं
मेरी राम कहानी सुनकर लोग हँसी में टाल गए
मुझे पता था लोग सिर्फ़ मतलब की बातें सुनते हैं