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दुनिया मान लिया है दिल को / पुरुषोत्तम प्रतीक
Kavita Kosh से
दुनिया मान लिया है दिल को
कैसे पहचानें मंज़िल को
कैसे हम दिल को समझाते
ये समझाना था जाहिल को
दिल में पूरा नगर बसा है
दिल में ही ढूँढो क़ातिल को
गाँव बहें या फ़सलें सूखें
बगुले ढूँढ़ेंगे साहिल को
क़ाबिल होकर पछताओगे
दाद मिलेगी नाक़ाबिल को
हमसे कब तिल भी बन पाया
तुमने ताड़ बनाया तिल को
साँप समाए हैं संतों में
सूँघ लिया सारी महफ़िल को