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दुनिया में जो समझते थे बार-ए-गिराँ मुझे / रईस सिद्दीक़ी
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दुनिया में जो समझते थे बार-ए-गिराँ मुझे
वो ही सुना रहे हैं मिरी दास्ताँ मुझे
मुड़ मुड़ के देखता था तिरे नक़्श-ए-पा को मैं
तन्हा समझ के चल दिया जब कारवाँ मुझे
दो गाम मेरे साथ चले राह-ए-इश्क़ में
मिलता नहीं है ऐसा कोई राज़-दाँ मुझे
ख़ामोशियों से राब्ता का़एम जो कर लिया
दुनिया समझ रही है अभी बे-ज़बाँ मुझे
मैं ने ‘रईस’ ख़िदमत-ए-शेर-ओ-सुख़न जो की
इस वास्ते अज़ीज़ है उर्दू ज़बाँ मुझे