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दुनिया में सारे प्यार के रिश्तों के साथ साथ / सिया सचदेव

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दुनिया में सारे प्यार के रिश्तों के साथ साथ
जिन्दा हूँ ज़िंदगी की उमंगों के साथ साथ

मिलता है मुझसे जो भी वो होता है पाक रूह
रहती हूँ आज कल मैं फ़रिश्तों के साथ साथ

बेताबियाँ भी पैंग बढाती हैं दिल की सब
आँखों में इंतज़ार के लम्हों के साथ साथ

मैं आ गयी हूँ आज ये कैसे दयार में
लाशें पड़ी हुई हैं दुपट्टों के साथ साथ

दिल तोड़ने का ख़ब्त नहीं है जहाँ पनाह
मैं खेलती हूँ अब भी खिलौनों के साथ साथ

आँखों से मेरी अश्क़ गिरे हैं तमाम रात
पतझड़ के टूटते हुए पत्तों के साथ साथ

जब भी सिया उठाती है अपने क़दम तो फिर
मंज़िल पुकार लेती है रस्तों के साथ साथ