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दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान / ज्ञानी राम शास्त्री

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दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान
सब तै सस्ता मिलै आज यू बद किस्म्त इंसान
मरा पड्या हो पास पड़ौसी कतई नहीं अफसोस
समो समो के रंग निराले नहीं किसे का दोष
कार लिकड़ज्या ऊपर तै कर दूजे नै बेहोश
खा माणस नै माणस कै फिर भी कोन्या संतोष
खून चूसते नौकर का यें मालिक बेईमान

माणस की ना कदर करैं ये साहूकार अमीर
दूजे की मेहनत पै अपनी बणा रहे तकदीर
हालत देख लुगाई की भरज्या नैनां में नीर
भूखी मरैं आबरु बेचैं गहणै धरैं शरीर
लाल बेच दें गोदी का सै भूख बड़ी बलवान

पढ़े लिख्यां की पूछ रही ना फिरैं घणे बेकार
आत्महत्या करैं कई छोड्ड़े फिरते घर बार अ
माणस खींच रहया माणस नै आज सरे बाजार
आज मनु का पूत लाड़ला रौवे किलकी मार
अपने पैरें आप कुहाड़ी मार रहया नादान

खून, जिगर बिकते माणस के बिकते हाड्डी चाम
जिंदगी लग भी बिकज्या सै जै मिलज्यां चोखे दाम
सब तै बड़ा बताया था बेदां म्हं माणस जाम
“ज्ञानी राम इस कळियुग म्हं हो ग्या सबतै बदनाम
पता नहीं कित पड़ सोग्या पैदा करके भगवान