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दुनिया यूँ गायब हुई / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
पहले पहल फूल आये धरती पर
फिर चहचहाते पक्षी आये
फिर कछुओं की आवाजें सुनाई पड़ने लगीं
धीरे-धीरे अंगूरों की थैली में रस भरने लगा
एक वक्त के बाद दिन के
दो टुकड़े हुए
परछाइयाँ उड़ान भरने की हिम्मत करने लगीं
हरियाले बगीचे को घेर लिया झींगुर, टटहरियों की मस्त आवाजाही
में डूबी उधेड़बुन ने
येरुशेलम के "पहले मंदिर" में
मीठी घंटियाँ एक सी बोली बोलने लगीं
फिर दुनिया गोल हुई
इसके मिलनसार रास्ते एक के भीतर एक राह पाने लगे
एक अजनबी राह में
तुमसे मिली मैं
और फिर शिद्दत से बनी हुई ये
दुनिया सिर समेत गायब हो गयी