भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया लुटी तो दूर सर तकता ही रह गया / इब्राहीम 'अश्क़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया लुटी तो दूर सर तकता ही रह गया
आँखों में घर के ख्वाब का नक्शा ही रह गया

उसके बदन का लोच था दरिया की मौज में
साहिल से मैं बहाव को तकता हीं रह गया
 
दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
बैठा मैं अपने घर में अकेला ही रह गया

वो अपनी अक्स भूल के जाने लगा तो मैं
आवाज़ दे के उसको बुलाता हीं रह गया

हम-राह उसकी सारी बहारें चली गईं
मेरी जबां पे फूल का चर्चा ही रह गया

कुछ इस अदा से आ के मिला हँ से 'अश्क' वो
आँखों में जज़्ब हो के सरापा ही रह गया.