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दुनिया से कुफ्रे - आम मिटाया हुज़ूर ने / सादिक़ रिज़वी
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दुनिया से कुफ्रे - आम मिटाया हुज़ूर ने
इन्सानियत का दर्स सिखाया हुज़ूर ने
इन्सानी ज़िन्दगी पे था ज़ुल्मत का इक हिसार
रौशन ज़मीर कर के दिखाया हुज़ूर ने
हैवानियत का दौर था रिश्ते अहम न थे
बेटी की क़द्र करना सिखाया हुज़ूर ने
बिठला के दिल में जहल के इक खौफे-आक़ेबत
किरदारे-बद को रब से डराया हुज़ूर ने
दस्ते-नबी पे पढ़ने लगे कल्मा कंकरी
मोअजिज़ - नुमा भी बन के बताया हुज़ूर ने
पढना है पंजगाना नमाज़ें तमाम उम्र
फरमाने-हक़ हर इक को सुनाया हुज़ूर ने
क़िस्मत में गर लिखा है तो हम देंगे हाज़री
'सादिक़' अगर मदीना बुलाया हुज़ूर ने