भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया है बाज़ार, सुन बाबा / नमन दत्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया है बाज़ार, सुन बाबा।
हर नज़र करे व्यापार, सुन बाबा।

बेमानी है एहसासों की बात यहाँ,
ख़ुदग़र्ज़ी है प्यार, सुन बाबा।

मेला चार दिनों का है, सब छोड़ यहीं,
जाना है उस पार, सुन बाबा।

तेरी चादर तेरी लाज बचा पाए,
उतने पाँव पसार, सुन बाबा।

कैसे रिश्ते नाते? क्या मेरा तेरा?
मतलब का संसार, सुन बाबा।

कुछ पाने को, क्या कुछ खो डाला तूने,
अब तो सोच विचार, सुन बाबा।

ख़ाली हाथ चले जाना है दुनिया से,
बस इतना है सार, सुन बाबा।

हर इक गरेबाँ तर है लहू से, देखो तो-
ये कैसा त्योहार, सुन बाबा।

मस्जिद में हों राम, ख़ुदा मंदिर पाऊँ,
ऐसा मंतर मार, सुन बाबा।

इंसानियत जो ज़हनों में भर दे "साबिर"
हुनर वही दरकार, सुन बाबा।