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दुनिया / विजेन्द्र

भैंस तुड़ाकर भागी
नवांकुरो को निर्मम
खूँद-खूँद बगुराती
जीभ बड़ी पापिन है
करती आपघाती
पाँच जनें
जहाँ खड़े दिखे है
कभी नही सकुचाती
सुनता हूँ
जाने कब से
यह दुनिया चाहे जितनी
मनभावन सुंदर
है तो आनी-जानी
कब तक
खैर मनाए बकरे की माँ
यह सब तो है फ़ानी।