भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुपट्टा / श्रीप्रकाश शुक्ल
Kavita Kosh से
					
										
					
					दुपट्टा लहरा रहा है शानदार
हवा चल रही है तेज़
बादल बरसने को हैं
मौसम रहा है लगातार बदल  
तय करना कठिन है
दुपट्टा क्यों लहरा रहा है
अंग क्यों भीगे हैं
उभार क्यों नही है
रंग क्यों गायब है
सवाल करती है युवती!
क्यों नहीं किसी को याद आते
कालिदास 
या फिर उनकी शकुंतला
रंग यहाँ भी दिखता है
क्यों 
केसरिया या फिर भगवा !
	
	