दुबरयबाक कारण / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
1
ककर पकड़ि नाङडि वैतरणी पार करब हम,
कहुना फेरो लोक सभामे पैर धरब हम।
सत्ता भोगल जीह सदा चटपटा रहल अछि,
आ हलाल मुर्गीसन मन छटपटा रहल अछि॥
2
ताल ठोकिकय अछि समक्ष दुर्दान्त विपक्षी,
देखि-देखि से छूटि रहल अछि ई कछमच्छी,
एकबेर नहि, सबकेँ बारंबार ठकलिऐ,
जितला पर जे गेलिऐ से नहि घूरि तकलिऐ॥
3
ताही डरेँ पानि पेटक गड़गड़ा रहल अछि,
एहि बेर सब चक्र-चालि गड़बड़ा रहल अछि,
उमतल रहलहुँ, आब करै छी आत्म-निरीक्षण,
तखन बुझाइछ बीन्हि रहल अछि एक-एक क्षण॥
4
घेड़ि लेलक दुरमतिया तेँ पहिने नहि चेतल,
मानू अपनहि हाथेँ अपने गरदनि रेतल,
अपने करनी सुमिरि-सुमिरि पछताय रहलछी,
सपनोमे देखै छी-पटका खाय रहल छी॥
5
जितलहुँ तँ बुझि पड़ल आब बड़का नबाब छी,
किछु फुरैछ नहि ककरा ककरा की जबाब दी।
दुइओ पुश्तक लेल भेल ओरियान न पूरा,
ई मध्यावधि भोंकि देलक छातीमे छूरा॥
6
की कपार मे लिखने छथि नहि जानि विधाता,
बेड़ा पार करत, वा चित्त करत मतदाता।
महासमर केर रंग-ढंगसँ घबड़ायल छी,
एही चिन्तामे डूबल हम दुबरायल छी।