दुरलभ नरदेह पा‌इ, भूल्यौ क्यों, बावरे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग झिंझोटी-ताल कहरवा)

दुरलभ नरदेह पा‌इ, भूल्यौ क्यों, बावरे।
राधा-सुधा छाँडि, करत विषय-विष-चाव रे॥
एक-‌एक साँस जात बृथा अनमोल रे।
संतत, मन! राम सुमिरु, जीभ! राम बोल रे॥
मिथ्या सब भोग-सुख, दुःखकी खान रे।
त्यागि राग-ममता सब, सुमिरु भगवान रे॥
है न कछु तेरौ ह्याँ-तन-धन-धाम रे।
मिथ्या अभिमान-मोह त्यागि, भजु राम रे॥
राम पितु, मातु राम, राम सर्बस्व रे।
राम सब भाँति एक तेरौ निजस्व रे॥

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