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दुर्दिन पूछकर नहीं आते / सत्यनारायण सोनी

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कहने को तो तुम
बहुत बड़े लोग हो गए हो,
बहुत धनी,
एक भाई अमेरिका में बस गया है।
बहुत बड़ा कारोबार है उसका
और एक भाई
आस्ट्रेलिया में पढ़ाता है
खेती-बाड़ी
और उसकी बीवी चलाती है
मुम्बई में एक एनजीओ,
बिखरते परिवारों को जोडऩे के लिए
आयोजित करती है सेमिनार।
 
एक भाई डॉक्टर बनकर
चला गया है चैन्नई
और सुना है बेशुमार है
बैंक बैलेंस तुम्हारा
और लोगों की नजरों में
तरक्की इसी का नाम है।

इलाके के लोगों को
नाज है तुम पर
और चार जने जब
भेळे बैठते हैं तो
तुम्हारी बड़ाई करते नहीं अघाते।
मगर गांव में तुम्हारा पुश्तैनी घर
हैरान-वीरान बाट जोह रहा है
बरसों से तुम्हारी।
पड़ोस में रहने वाली तुम्हारी ताई
पड़ोस में रहने वाली तुम्हारी ताई
जो अब इतनी बूढ़ी हो गई है कि
नजरें धुंधलाने लगी हैं
और जैसे-तैसे करके
लाठी के ठेगे
रोज तुम्हारे घर के सामने
आ ही जाती है
और इस घर की
चहल-पहल को याद करती
खो जाती है
गुजरे दिनों की
गुजरी बातों में।

अभी थोड़ी देर पहले
मैंने देखा उसे
अपनी आंखों पर
जीवणे हाथ का छतर-सा बनाए
निहारते
तुम्हारे ढमढेर होते घर को।
मुझे संबोधित कर बोली वह
बस इतना ही-
भरा पूरा घर था,
दुर्दिन पूछकर नहीं आते...
उजड़ गए बेचारे !

2012