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दुर्योधन के देस / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
ई दुर्योधन अउ दुस्सान के देस
जहाँ भगवान भी
धरऽ हइ भिखारी के भेस
ई बड़का
सबके नचा रहले हे
दुस्मन से मिलके-
घर में महाभारत रचा रहल हे
कुरसी के खेल में
खून पानी हइ
लगऽ हइ
सब कोय बढ़ हइ
कि अपन हक बांट सकै
जे अतताई हइ
ओकरा कस के डाँट सकै
ई बीड़ा के चिबाबऽ हइ
पसमीना छोड़ के
कफन के सिलाबऽ हइ
जिंदगी भर
जहर के प्याली
काहे कोय छीनऽ हइ
हमर आगू के थाली
के नै ताक लगैने हइ
कोय करोर
कोय लाख लगैने हइ
कोय
ठिकरी से ठाठ बदल रहल हे
कोय हाट बदल रहल हे,
कोय बाट बदल रहल हे
कोय बदल रहल हे हवेली
कोय प्लाट बदल रहल हे