भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुलहा आइ लऽकऽ आइ सखी सभ / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दुलहा आइ लऽकऽ आइ सखी सभ
जाइ छै कोहबरबामे
दुलहा आइ लऽकऽ सखी सभ
जाइ छै कोहबरबामे ने हय।
से घड़ी राति वन अगिली बीतै छै
घड़ी राति वन पैछली बीतै छै
गीदड़ भालु गुड़गुड़ी मारै छै
सुखल डाढ़ि पर कागा बोलै छै
सन सन सन सन खोला उठै छै
पैछली ढारि कर नीनियॉ बोललै
कोहबर घरमे दुलहा पड़लै
विध-बेहबार कोहबरमे होइ छै
दुलहा जे बनि गेलै दादा कोहबर आइ घरबामे
आ दुलहा जे बनि गेलै दादा
कोहबर घरबामे ने हय।।