दुलारी धिया / बद्रीनारायण
पी के घर जाओगी दुलारी धिया
लाल पालकी में बैठ चुक्के-मुक्के
सपनों का खूब सघन गुच्छा
भुइया में रखोगी पाँव
महावर रचे
धीरे-धीरे उतरोगी
सोने की थारी में जेवनार-दुलारी धिया
पोंछा बन
दिन-भर फर्श पर फिराई जाओगी
कछारी जाओगी पाट पर
सूती साड़ी की तरह
पी से नैना ना मिला पाओगी दुलारी धिया
दुलारी धिया
छूट जाएँगी सखियाँ-सलेहरें
उड़ासकर अलगनी पर टाँग दी जाओगी
पी घर में राज करोगी दुलारी धिया
दुलारी धिया, दिन-भर
धान उसीनने की हँड़िया बन
चौमुहे चूल्हे पर धीकोगी
अकेले में कहीं छुप के
मैके की याद में दो-चार धार फोड़ोगी
सास-ससुर के पाँव धो पीना, दुलारी धिया
बाबा ने पूरब में ढूँढा
पश्चिम में ढूँढा
तब जाके मिला है तेरे जोग घर
ताले में कई-कई दिनों तक
बंद कर दी जाओगी, दुलारी धिया
पूरे मौसम लकड़ी की ढेंकी बन
कूटोगी धान
पुरईन के पात पर पली-बढ़ी दुलारी धिया
पी-घर से निकलोगी
दहेज की लाल रंथी पर
चित्तान लेटे
खोइछे में बाँध देगी
सास-सुहागिन, सवा सेर चावल
हरदी का टूसा
दूब
पी-घर को न बिसारना, दुलारी धिया।