दुलि दुहि पिटा धरण न जाउ
रूखेर तेन्तलि कुम्भीरे खाउ
आँगन घरपण सुन भी बिआती
कानेट चोरी निल अधराती
अपना मासें हरिणा वैरी
खणाहँ न छाँड़इ भुसुक अहेरी
दुलि दुहि पिटा धरण न जाउ
रूखेर तेन्तलि कुम्भीरे खाउ
आँगन घरपण सुन भी बिआती
कानेट चोरी निल अधराती
अपना मासें हरिणा वैरी
खणाहँ न छाँड़इ भुसुक अहेरी