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दुश्मनी मुमकिन है लेकिन दोस्ती मुमकिन नहीं / प्राण शर्मा
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दुशमनी मुमकिन है लेकिन दोस्ती मुमकिन नहीं
दिलजलों से प्यार वाली बात ही मुमकिन नहीं
यूँ तो उगती हैं हजारों लकड़ियाँ संदल के साथ
ख़ुशबुएँ हर एक की हों संदली मुमकिन नहीं
भूल जाऊं हर निशानी आपकी मुमकिन है पर
भूल जाऊं मेहरबानी आपकी मुमकिन नहीं
देखने में एक जैसे ही सही सारे मकान
हर मकाँ में एक जैसी रोशनी मुमकिन नहीं
माना ,ले के आया हूँ मैं एक विनती राम जी
ये मेरी विनती हो तुम से आख़री मुमकिन नहीं
पेड़ के ऊपर छिटकती है हमेशा चांदनी
पेड़ के नीचे भी छिटके चांदनी मुमकिन नहीं
मुस्कराने वाली कोई बात तो हो दोस्तों
बेवजह ही मुस्कराऊँ हर घड़ी मुमकिन नहीं