भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दुश्ना मिल जाएगा / हसन अब्बास रजा
Kavita Kosh से
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दुश्ना मिल जाएगा
ज़िंदानों को तोड़ निकलने का रस्ता मिल जाएगा
शाह-सवार के कट जाने का दुख तो हमें भी है लेकिन
तुम परचम थामे रखना सालार-सिप्पा मिल जाएगा
हमें ख़बर थी शहर-ए-पनाह पर खड़ी सिपाह मुनाफ़िक़ है
हमें यक़ीं था नक़ब-ज़नों से ये दस्ता मिल जाएगा
सोच-कमान सलामत रखनी होगी तीर-अंदाज़ बहुत
कौन हदफ़ है और कहाँ है उस का पता मिल जाएगा
बस तुम जब्र की चोटी सर करने का अहद-ए-जवाँ रखना
उस तक जाने वाले रस्तों का नक़्शा मिल जाएगा
हसन ‘रज़ा’ और क़दम आवाज़-ए-जरस पर रख वरना
शाह का सर लाने तुझ का कोई दिवाना मिल जाएगा