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दुश्मन जो बने अपना ही परिवार क्या करें / रंजना वर्मा

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दुश्मन जो बने अपना ही परिवार क्या करें
हो जाय जो अपने से ही बेज़ार क्या करें

दिल चाहता है जो उसे तू ही न दे सका
अब और भला प्यार का इज़हार क्या करें

जेलों में हैं गुनाह के कॉलेज खुले हुए
सीखे न तो फिर और गुनहगार क्या करे

रुपया बहुत कमा लिया भण्डार भर लिया
दिल मे न रहा प्यार तो घर बार क्या करें

आबे हयात से जिसे सींचा नहीं कभी
गुलशन वो उजड़ जाये तो फिर खार क्या करें

ओढ़े सियह लिबास वो बैठा है सामने
ले रंग चटक उस पर बौछार क्या करें I

तकदीर है कहती कि भटक रेगज़ार में
झुलसे हैं पांव रेत से अंगार क्या करें

दिखते नहीं दरख़्त पे झूले पड़े हुए
कट जायें डालियाँ तो वो सिंगार क्या करें

पानी की बूंद बूंद को तरसा करे जमीं
जंगल हुए उजाड़ तो बहार क्या करें