दुष्ट पाक शर्मिन्दा है / बाबा बैद्यनाथ झा
करनी का फल मिल जाने से,
दुष्ट पाक शर्मिन्दा है
चूल्लू भर पानी में मरकर,
फिर भी क्यों वह जिन्दा है?
पुलवामा-संहार कराकर,
वह पापी इतराता था
गीदड़ खुद को शेर समझकर,
गीत खुशी के गाता था
भीख माँगकर खाने वाला,
निज अस्तित्व भुला डाला
अकड़ दिखाकर घूम रहा था,
मन्द-मन्द मुस्काता था
भारत की औक़ात जानकर,
अब मासूम परिन्दा है
पिला दूध साँपों को उसने,
खेल मौत का खेला था
जश्न मनाता था हरदम वह,
वहाँ ईद-सा मेला था
पालपोस कर आतंकी को,
अनगिन शिविर चलाता था
शान्ति चाहने वालों का वह,
सबसे बड़ा झमेला था
थू थू करती दुनिया उसपर;
करती केवल निन्दा है
वायु सैनिकों ने थोड़ा सा,
निज पौरुष दिखलाया है
कुछ दैत्यों को वहाँ मारकर,
नरकद्वार पहुँचाया है
काँप रहे वे थरथर कैसे,
बिल में घुसकर सिसक रहे
चखा दुष्टता का फल उसको,
खूब पाठ सिखलाया है
रक्षक चक्र सुदर्शनधारी,
यहाँ कृष्ण गोविन्दा है