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दुष्यन्त नहीं काव्य का प्रतिमान मिला है / शिव ओम अम्बर
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दुष्यन्त नहीं काव्य का प्रतिमान मिला है,
फिर अक्षरों के वंश को दिनमान मिला है।
संकल्प सुदृढ़ ले के चले श्रम को अन्ततः,
उत्तप्त मरुस्थल में मरुद्यान मिला है।
अवहेलना के दंश मिले सौम्य-शिष्ट को,
जो धृष्ट था उस शख़्स को सम्मान मिला है।
देवों को अमृत दानवों को वारुणी चषक,
हर युग में महादेव को विषपान मिला है।
परिवेश नया दृष्टि नई देशना नई,
भारत में ग़ज़ल को नया परिधान मिला है।