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दुसुवारी / चंद्रदेव यादव

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अँखियन में रात कटल, जाने
केकर सुध आइल, रात गइल
मन भइल बेकहल, अनरस में
धीरे-धीरे भिनसार भइल l

पत्तिन पर ओस उतर के जब
खुसबू से मिताई करै लगल,
जब चान तलइयन में आके
कुइँयन से सगाई करै लगल,
मन केकरे मन से मिल के तब
चुपके से हिताई करै लगल,
अनबोलता के अब पाँख उगल
उड़ कहाँ नताई करै लगल,
खटपाटी ले, कबहूँ उतान
देहियाँ बिन बादर क्वार भइल
मन बिना चैन आवै न अब
जीअब केतना दुसुवार भइल l

पछुआँ बयार जब से चललीं
सबकर मन रँगल सियार भयल,
पुरना तेवहार बिला गइलैं
सबकर नवका तेवहार भइल l
दू अच्छर पढ़के गिटिर–पिटिर
नवका बुढ़वन के डाँटेलँ
रस भरल थार सम्हने क छोड़
ऊ जूठा दोना चाटेलँ l
देखतै देखत दुनिया बदलल
देखत हई गाँव बजार भइल,
मन लुबधल ओहि बजारे में
अपने मन क सरदार भइल l
का करीं, जतन से कवने अब
मन के परबोधीं आ मरदे!
इन्नर क परी क आस छोड़
अपने माटी में रस भर दे l
सरगे के तरइया के पीछे
जिनगी केतना लाचार भइल,
तू रूप के पीछे भागेला
सब तोंहके कहै छिनार भइल l

अपने हर गली-मुहल्लन क
बाकी दुनिया से तार जुड़ल,
अपने इहवाँ के मनइन क
दुसरे देसन में नार गड़ल l
अइसे में कहब ई बेमानी
मन जहाँ जुडल बेकार जुड़ल,
सरकर जुड़ल सरकारन से
हुसियारन से हुसियार जुड़ल l
ई कुल अच्छा ह, चउचक ह
एक–दुसरे से संसार जुड़ल,
बाकी ई रिकित नाहिं अच्छी
दुसरे के भरोसे स्वाँग करा,
आपन चादर बित्ता भर क
ओम्मे सगरो संसार भरा l
औकात देख के काम करा
मन तोंहके हम समझाईला,
हमसे लामें चलि जाला जब
हम बेर-बेर गोहरईला
पच्छूँ के भरोसे रहले से
जिनगी आपन निरधार भइल
कब तक उधार पर और केहु जीई
ई सारी उमिर उधार भइल l

एक हाथे में बाँसे क पइना
लेके तू राज काज करबा,
तूं राजनेत क ले अइना
आपन उल्लू सीधा करबा l
तूं देस क पेंड़ी खन देबा
आगी में जनता के जरबा,
जब दिया बुताई देसवा क
लगुअन-भगुअन के तूं तरबा l
ई राजनेत बैकुंठी ह
हे मन ई कउवाठोंठी ह,
इहवाँ केतना गोरखधंधा
देखै में लगै अनूठी ह l
ई अपनन से परहेज करे
दुसरे क पानी रोज भरे,
ई सबके गरे क फंदा ह
ई बेमिसाल बैपार भइल,
एही से सरग-नरक इहवाँ
डामर-फाँसी तइयार भइल l

मन बोलल हमें दबावा ना
अपने के तनी समझावा ना,
चढ़ के तूं पुरनकी नइया पर
पानी में हमें डुबावा ना l
अब नए जमाने में ढल जा
बेफलतू रार बढ़ावा ना,
जामा के बहरे मत होखा
पानी पी के गरियावा ना l
देखा दुनिया कहवाँ चहुँपल
चुपचाप तुहूँ चलि आवा ना,
ई नया जमाना ह प्यारे
अब नई रिकित क बात करा,
दुसरे के झोंका चूल्ही में
जिन पाप-पुन्न से तनिक डरा l
छन भर के लिए आन्हर बन के
देखा तूं सगरो हरा हरा,
हम आपस नाहिं इहाँ आइब
ई काया कारागार भइल,
तूं आँख खोल देखा, नइकी
दुनिया केतना रसदार भइल l

हे राम भइल मनवाँ मुँहफट
अब समुझ में कुछ ना आवेला,
ई सपना ह कि हकीकत ह
ई बेर-बेर भरमावेला l
जब लगल आग सगरो जग में
आगी से आग बुतावेला,
बिखबंवर कमिनियाँ के पीछे
दिन-रात ई ससुरा धावेला l
एके सच मान के अन्हराइल
मन, हमके बहुत सतावेला,
लागत ह बहुतै जल्दी ई
धरती माई बिनसा जइहैं,
जोबनवारिन के कारन अब
सबकर ईमान नसा जइहैं l
निड्आ घूमब फैसन बन गेल
एनकर ई पैरोकार भइल,
मन लुच्चन क, बेईमनन क
अपराधिन क सरदार भइल l

मन डपट के बोलल गिटिर-पिटिर
' यू ब्लडी फूल, सुन लो मिस्टर!
दूधे क धोवल के इहवाँ
छोटमनई, मिनिस्टर, आफीसर l
सेती के गंगा में लपलप
गोता मारा अब हे मिस्टर,
न त दूध के माछी की नाईं
फेंकल जइबा हे घरघुस्सर l
येह रूप के मंडी में प्यारे
बिटिया, फूआ न केहु सिस्टर,
तेली के बरद बनके कब्बों
तूं समझ न पइबा ई कल्चर l
पछुआँ बयार में उड़-बुड के
फुर्दी से चोला चेंज करा,
अपने मउगी के दुसरे से
तूं जिनिस नाईं एक्सचेंज करा l
ओ डार्लिंग हेलो, हाय हाय
कहि के बैतरनी पर करा,
'ऊँ नमो सेक्स गॉडेस प्रसीद'
मंतर क निसदिन जाप करा l
तूं सिटपिताट काहें हउवा
जग क ईहै बेवहर भइल,
जे कूदल आग के दरिया में
ओकर देहियाँ कचनार भइल l'

मन रे तूं बहुत ढीठ भइले
चुपचाप इहाँ चलि आऊ रे,
ई नयका राग बंद कइ ले
अगले खिचड़ी न पकाऊ रे l
कुछ देस-पूर क कर लिहाज
उलटी गंगा न बहाऊ रे,
हम जानत हई बात ई कुल
हमके न पाठ पढाऊ रे l
बोली-बानी अ रहन-सहन क
देस-काल से मेल रहे,
जे ना मानत ओकरी खातिर
ई कुल लइकन क खेल रहे,
पहिचान आचरन से होला
एकरे बिन सब बेमेल रहे
बस देस के माफिक भेस रहे
आचरन क लगल नकेल रहे l
केहू लंगोट पर कोट पहिन
ना आपन हँसी उड़ावेला,
ना बान्ह के टाई कुर्ता पर
अपने के भांड़ बनावेला l
मन प्यारे, छाती फार सुरुज
अहिन्यारा क उग आइल ह,
देखा पच्छूँ में चान दुखी
ओकर चेहरा पियराइल ह l
अउरू पत्तिन के अँचरा में
कोंढ़िन क मुँह रतनार भइल,
अब पुरुब दिसा महके लागल
घर-अंगनाई गुलजार भइल l