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दुस्मीचारौ ओझयां / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
दुस्मीचारौ ओझयां
ओझका काढूं
बदळूं
पसवाड़ा
रैय-रैय चिमकूं
सूतौ जागूं।
इण पैली
सूय जावतौ हौ
घोड़लिया बेच।
गम जावतौ हौ
हरजस गावती
चिड़कलियां रै
संगीत ।
रम जावतौ मन
मिंदरियै पूरीजतै
संख-नाद।
हथायां चढ
सबदां रचीजतौ हौ
म्हैं
ढाई आखरां रै
रंग।
पण अबै व्हैतां ई खुड़कौ
रूं-रूं ऊभौ व्है
रोय‘र रैय जावै अळगौ कठै ई
गिंडक के स्याळ
डींग हांकण लागै
बीह
म्हारै मांय
रात में अंधारै ज्यूं,
पसरतौ।