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दुहरापन जीते हैं / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
झेल रही है
नयी सदी यह
मन-मन की संवादहीनता
मन पर हावी हैं इच्छाएँ
अस्त-व्यस्त ये दिनचर्याएँ
छीन रही है
सुख का अनुभव
जीवन की संवादहीनता
आभासी दुनिया के नाते
पल में आते, पल में जाते
दिल से दिल को
जोड़ न पाती
धड़कन की संवादहीनता
कैसा दुहरापन जीते हैं
संबंधों से हम रीते हैं
बाँट रही
मन के आँगन को
आँगन की संवादहीनता