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दुहरा सेतु / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
दो बूँदें गिरते ही
बीज-सा अँकुर आया
धूल में पड़ा था जो
नाम
दो बूँदें गिरते ही...
हरियाई यादों ने बाँध दिया
तनहाई पर दुहरा सेतु
सुलग उठी भीतर-भीतर नमी
अम्बर तक उठा धूम-केतु
दुपहर पर उतराई
शाम
दो बूँदें गिरते ही...