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दु:ख सीमित नहीं है / चंद्र रेखा ढडवाल
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इतने लोगों के बीच
तुम्हें घर आने को
नहीं कह पाने का दु:ख
सीमित नहीं है
तुम्हारे नहीं आने तक ही